सिद्धार्थ गौतम
तुम अगर यशोधरा का हाथ पकड़ कर
उसकी आँखें में झाँक लेते
तो शायद तुम्हें बौद्धत्व प्राप्त करने में
बारह वर्ष नहीं लगते
कितना साहस रहा होगा उन में
कितना निस्वार्थ
जब तुम को गोपा ने बोला होगा
सखा तुम सत्य की तलाश में जाओ
मैं सब संभाल लुंगी
और तुम त्याग जंगल में ढूँढ़ते रहे
कितना संयाम
कितना धैर्य रहा होगा उन में
जब तुमहारे केशों में अंगुलियाँ फिराते गोपा ने बोला होगा
आर्य तुम घर की चिंता ना करना
माँ , पिताजी और राहुल की जिम्मेदारी मेरी
में उनकी वो हर उम्मीद पूरी करूंगी
जो तुमसे है
और तुम करूणा रास्तों में तलाशते
कितनी करूणा रही होगी उन में
कि तुम्हारी कशमकश जान कर
देवी यशोधरा ने जीवन भर तुम्हारे जीवित होते
वैधव का वरण किया
और तुम विमोह साधुओं में तलाशते रहे
कौन सा महाञान मिला तुम को
बरगद के नीचे
जो उस रात नहीं मिला
जब यशोधरा ने अपना हर अधिकार
तुम्हारे चरणों में अर्पण कर
तुम्हें मुक्त कर दिया सांसारिक बंधनों से
तुम निर्वाण आसनों में तलाशते रहे
जीवन दुखों से परिपूर्ण हैं
दुख की जनक कामनाएँ हैं
कामनाओं को त्याग कर ही निर्वाण प्राप्ति संभव है
ये सब तुमको
उस क्षण नहीं नजर आया
जब देवी यशोधरा ने तुमको विदा किया
बारह वर्ष लग गए पेड़ के नीचे
वहीं पंहुचने को जहाँ से चले थे
सिद्धार्थ गौतम
तुम अगर यशोधरा का हाथ पकड़ कर
उसकी आँखें में झाँक लेते
तो शायद तुम्हें बौद्धत्व प्राप्त करने में
बारह वर्ष नहीं लगते
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