बहुत मुश्किल होती है साँस लेने में आजकल
जैसे छाती पर दुनिया का वजन रखा हो
और फेफड़ों में पानी भर गया हो
दम धुटता चला जाता है जीने कि जद्दोजहद में
और कर्ज मे डूबी धड़कने टूटने के नाम ही नहीं लेती
ना जाने माथे पर क्या लिखा लाया हूँ
की रात करवटों की लौंडी बन गई है
दिन जरूरतों का दलाल
और जब बाजार लगता है ना तो सब नीलाम हो जाता है
गुरूर ,गैरत, सपने , साथ सब कुछ
पर मेरे हाथ तो हर बार वही खोटे सिक्के ऩजर होते हैं
जो ना बजते हैं
जो ना सजते हैं
बड़ी जलील सी जिद है ये जिंदगी
No comments:
Post a Comment