मैं बंजारा
मेरे पैर भंवर हैं
मेरी रूह का रंग रवानी
मन में मोती कई सीप हैं
देह है मेरी पानी
मैं बंजारा
नील गगन पर
सूरज से पेंच लड़ाऊँ
लंगर फेंकूँ चंदा पर
तारों को फूँक बुझाऊँ
मैं बंजारा
चिलम जलाकर
कश में खिंचूँ रात
जलती बुझती बुझती जलती
चार बल्सित दो हाथ
मैं बंजारा
बादल छक लूँ
बारिश को मार ड़कार
रेंग रेंग के गिरगिट के संग
कर लूँ सहरा पार
मैं बंजारा
खारा सागर
कोहलू में पिरवाऊँ
नमक नमक पलकों से चुगकर
मिठा पाक बनाऊँ
मैं बंजारा
आग में जलकर
कुंदन में बन जाऊँ
सोने की चमचम चार चमक को
छप्पर पर मढ़वाऊँ
मैं बंजारा
रूह रेत कर
रेत रेत में कर दूँ
कुछ सहरा को आचमान दूँ
कुछ आसमान में भर दूँ
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