मेरे पैरों को पता हैं
पुच्छल तारों का दर्द
अक्सर वो भी भंवरों में उलझ जाते हैं
और लम्बी लम्बी पूँछ सम्भाले
मुन्जमिद उम्मीद ले कर
सूरज के आस पास जलेबियाँ बनाते हैं
कभी चंदा आँखें दिख़ाता हैं
कभी धरती भौं तरेरती है
कभी मंगल काट खाने को दौड़ती है
मगर ये कोई नहीं बताता
कि कैसे सूरज से मिला जाए
वो कहते हैं जल जाएगे
मैं कहता हूँ
जमे रहने से बेहतर होगा
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