मैं मानता हूँ
कि हवा हमेशा हक में नहीं बहती
कभी कभी
वो जड़ें भी हिला देती है
और पत्तियाँ भी गिरा देती हैं
मगर दरख़्त भी कहाँ जिद छोड़ते हैं
जब तक मिट्टी साथ देती है
खड़े रहते हैं
बारिश में भीगते
धूप में सूखते
रात के अंधेरों से लड़ते
जब तक मिट्टी साथ देती है
लेकिन जब मिट्टी बह जाती हैं
और जड़ें नंगी हो जाती हैं ना,
तब पेड़ पेड़ कहाँ रह जाते हैं
आकाश की तरफ बाँहें फैलाए
अपने तने के वजन के नीचे दरकना
और कयामत का इंतजार करना
आसान नहीं होता है
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