Tuesday, April 25, 2017

इंतजार

मैं मानता हूँ
कि हवा हमेशा हक में नहीं बहती

कभी कभी
वो जड़ें भी हिला देती है 
और पत्तियाँ भी गिरा देती हैं
मगर दरख़्त भी कहाँ जिद छोड़ते हैं

जब तक मिट्टी साथ देती है
खड़े रहते हैं
बारिश में भीगते
धूप में सूखते
रात के अंधेरों से लड़ते
जब तक मिट्टी साथ देती है

लेकिन जब मिट्टी बह जाती हैं 
और जड़ें नंगी हो जाती हैं ना,
तब पेड़ पेड़ कहाँ रह जाते हैं 

आकाश की तरफ बाँहें फैलाए
अपने तने के वजन के नीचे दरकना
और कयामत का इंतजार करना
आसान नहीं होता है

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