Monday, April 17, 2017

ये कविताएँ ना
खैरात के चिल्लर  की तरह है
किसी की पेट नहीं भरती
और ज़कात का गुमान भी रह जाता है

मैने
अक्सर कई बार परखा है इनको
बूढ़ी अम्मा की तरह हर बात का जवाब है इनके पास
हर बात का नुस्खा
बात,  जो कोई नहीं सुनता
नुस्खा जो कोई नहीं आजमाता
फिर भी
ये निकल ही पढ़ती हैं
सुध बुध खो कर
एक एैसे गलियारे में
जहाँ से कोई लौट कर नहीं आता

जहाँ से कोई लौट कर नहीं आता

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