कल जब लोग पूछेंगे
कि स्कंद कौन था
तो कहना कि एक दीवाना था
जो लकीरों के पेशतर चलने की चाहत में
हाशियों में कैद हो गया
उसका वजूद महज एक काफिया था
जो पन्नों के साथ बदल जाता
वो कभी रोमियो की तरह अपने दिल में खंजर उतार लेता
तो कभी रंझे की तरह जोगी बन जाता
सौ जिंदगीयों की श्राप मिला था उसको
या यू कहें कि मौत भी उसे बेवफा ही मिली थी
बस वो अपनी लाश को ढ़ोता रहा
कभी नीम की छाया में
कभी मोरपँख की माया में
ऩा उसे रात सुलाती थी
ना उसे दिन जगता था
उसकी आँखें में सुलगते ख्वाब उसकी सलीब बन जाते
और अक्सर सूली पर उसे
बुदबुदाते हुए सूना था
" उन्हें माफ़ कर देना, वो नहीं जानते कि वो क्या कर रहे हैं "
कल जब लोग पूछेंगे
कि स्कंद कौन था
तो कहना कि एक दीवाना था
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