Sunday, April 16, 2017

ताजमहल देखते हो ना
ख़ूबसूरत मकबरा है
मगर
है तो लाशों के उपर ही बना

संगमरमर का सफेद रंग
लहू की ललकार को कब दबा पाया है
जब वो नासूर बन कर फटता है ना
तो
शाहजहाँ भी
लाल किले  का कोठरी में दफ़न हो कर
मौत का इंतजार करते हैं

म़ुमताज़ का हुस्न भी एक कहानी था
शाहजहाँ का इश़क भी एक फ़साना
मगर जो ताज है ना
हर पूनम की रात को चाँद से ये सवाल करता है 
कि फ़ना हो कर भी जो मरासिम सुलगते हैं
क्या कभी वो आज़ाद होंगे

यमुना ने अक़सर उसे चाँद की परछाई में सिसकते देखा है

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