Tuesday, August 19, 2014

एक तार चाशनी का अपनी जुबाँ पर रख लूँ


एक तार चाशनी का
अपनी जुबाँ पर रख लूँ
मिठास ज़िन्दगी की
एक बार तो मैं चख़ लूँ

आँखों को बंद करके
मैं रौशनी लूटूं
तेरे इश्क़ में ऐसे
एक बार मैं टूटूं
हर जर्रा मेरे वज़ूद का
तेरे नाम हो जाये
तेरी इबादत तेरी परश्तिश
मेरा काम हो जाये
तू ही मेरे सुबह
मेरी शाम हो जाये
फिर चाहे हर कतरा
बदनाम हो जाये

जो मुझे अदा हो तेरी इनायत
रोज़ा हर दिन हर हाल में रख लूँ
मिठास ज़िन्दगी की
एक बार तो मैं चख़ लूँ

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