Saturday, December 20, 2014

कभी घुल जाउँगा मैं

कभी
घुल जाउँगा
मैं
रात कि शबनम में
और तुमको ना खबर होगी
सुबह जागोगो
तो सूरज बदनुमा सा होगा
और रात की सीलन तुम्हारी साँसों में महकेगी
गेसुओं में उलझे ख्याल तुम्हारी उंगलियों को बाँध लेंगे
और तुम्हारी नज़र रोशनी से सवालात करेगी
दर
दीवारें
दरीचें
दफ्न कर देंगी
दरम्यान
और छत पर रेंगते मरासिम
तुम्हारी आँखों में उतर जाएँगे
पलकों पर पतझड ठहर जाएगा
मुजंमिद साँसों से पेशतर
धङकने रंज करेगी
जिंदगी के इसरार पर
ना दर्द होगा
ना सुकून
बस वक्त
पिघल पिघल कर
मोम सा बहता रहेगा
तकिए की सलवटें चुभेंगी
रूह पर खराशें बन कर उतर जाएंगी
रात पसरेगी बिस्तर पर बन कर रकीब
नींद
करवटों का कहर होगी
रोशनी देगी दस्तक
मगर
वो ना सहर होगी
कभी
घुल जाउँगा
मैं
रात कि शबनम में
और
तुमको ना खबर होगी

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