कोरी कविताएं ही लिखता रहा आज तक
अब सोचता हूँ
कुछ तो ऐसी बात लिखूँ
सुर्ख लहू से ज़ाज़बात लिखूँ
जिंदगी की जात लिखूँ
मौत की औकात लिखूँ
वक़त कि मैं लात लिखूँ
सूरज पर मैं रात लिखूँ
रोटी का मैं दर्द लिखूँ
भूख लिखूँ सर्द लिखूँ
कांच के मैं मर्द लिखूँ
लालची नामर्द लिखूँ
तूफ़ान लिखूँ आग लिखूँ
आज इंक़लाब लिखूँ
अब सोचता हूँ
कुछ तो ऐसी बात लिखूँ
सुर्ख लहू से ज़ाज़बात लिखूँ
अब सोचता हूँ
कुछ तो ऐसी बात लिखूँ
सुर्ख लहू से ज़ाज़बात लिखूँ
जिंदगी की जात लिखूँ
मौत की औकात लिखूँ
वक़त कि मैं लात लिखूँ
सूरज पर मैं रात लिखूँ
रोटी का मैं दर्द लिखूँ
भूख लिखूँ सर्द लिखूँ
कांच के मैं मर्द लिखूँ
लालची नामर्द लिखूँ
तूफ़ान लिखूँ आग लिखूँ
आज इंक़लाब लिखूँ
अब सोचता हूँ
कुछ तो ऐसी बात लिखूँ
सुर्ख लहू से ज़ाज़बात लिखूँ
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