तुम से
ना शिकवा है
ना शिकायत कोई
तुम
वक़त के संग बह गये
जज़्बात पीछे रह गए
मेरी हर रात सहर हो
ये जरुरी तो नहीं
तुम
वहाँ मौज़ूद थे
हर बार जब सज़दा किया
तुम खुदा जो हो ना सके
इबादत अधूरी तो नहीं
मेरी हर रात सहर हो
ये जरुरी तो नहीं
ना शिकवा है
ना शिकायत कोई
तुम
वक़त के संग बह गये
जज़्बात पीछे रह गए
मेरी हर रात सहर हो
ये जरुरी तो नहीं
तुम
वहाँ मौज़ूद थे
हर बार जब सज़दा किया
तुम खुदा जो हो ना सके
इबादत अधूरी तो नहीं
मेरी हर रात सहर हो
ये जरुरी तो नहीं
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