ना जाने
कितनी कविताएँ बही हैं
काल प्रवाह में
कुछ तैरती रहीं
कुछ किनारे लगी
कुछ डूब गयी
वक्त के भँवर में
मैं
आज भी
उनके निशान ढूंढता हूँ
कितनी कविताएँ बही हैं
काल प्रवाह में
कुछ तैरती रहीं
कुछ किनारे लगी
कुछ डूब गयी
वक्त के भँवर में
मैं
आज भी
उनके निशान ढूंढता हूँ
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