ना जाने कहाँ खड़ा है यादों का काफिला
जितने मुसाफिर थे यहाँ आघे निकल गए
मुन्जमिद एहसास मेरे बर्फ बन गए
उनके जो जज़्बात थे सरे पिघल गए
उनकी जिन यादों को मैं ढोता रहा हर सू
बनकर भँवर वो सरे मुझको निगल गए
ना जाने कहाँ खड़ा है यादों का काफिला
जितने मुसाफिर थे यहाँ आघे निकल गए
जितने मुसाफिर थे यहाँ आघे निकल गए
मुन्जमिद एहसास मेरे बर्फ बन गए
उनके जो जज़्बात थे सरे पिघल गए
उनकी जिन यादों को मैं ढोता रहा हर सू
बनकर भँवर वो सरे मुझको निगल गए
ना जाने कहाँ खड़ा है यादों का काफिला
जितने मुसाफिर थे यहाँ आघे निकल गए
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