तुम्हारी परछाई अब मेरे क़दमों को नहीं काटती
तुम्हारी खलिश मुझे संशय में नहीं बाँटती
तुम्हारी कमी अब मुझे और नहीं अखरती
तुम्हारी आँखें अब मेरा पीछा नहीं करती
तुम्हारी आवाज है घुल गयी हवाओं में
तुम्हारी सबा अब धुल गयी घटाओं में
मैं
अब बहुत आघे निकल चुका हूँ
तुम्हारी खलिश मुझे संशय में नहीं बाँटती
तुम्हारी कमी अब मुझे और नहीं अखरती
तुम्हारी आँखें अब मेरा पीछा नहीं करती
तुम्हारी आवाज है घुल गयी हवाओं में
तुम्हारी सबा अब धुल गयी घटाओं में
मैं
अब बहुत आघे निकल चुका हूँ
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