Sunday, August 04, 2013

पिघल जाने दो

रोशनी को खुद पर 
कभी थोडा तो इतराने दो 
धूप को कमरे में उतर कर 
थोडा मुस्कुराने दो 
हौसलों को वादे 
कभी तो निभाने दो 
जला डालो झिझक के परदे 
थोड़ी तपिश तो आने दो 
मुन्ज़मिद बर्फ बर्फ ज़िन्दगी 
पिघल जाने दो

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