कल रात
बहुत देर तक जागता रहा
नींद के झोंकों से भागता रहा
तुझे आँखों में बसाये
तेरी यादों को सीने से लगाये
वक्त की धूल फाँकता रहा
कल रात
बहुत देर तक जागता रहा
कभी उँगलियों से हथेली पर लिखता तेरा नाम
कभी विरह के सिक्कों का गिनता दाम
सोचता रहा
न जाने बीतेंगे ऐसे कितने और सुबहो- शाम
तेरे ना होने के एहसास को
दर्द से नापता रहा
कल रात
बहुत देर तक जागता रहा
रात बहुत लम्बी थी
- बैरन
कैसे करवट करवट कट जाती
जो आँख लगे तो यादें तेरी
चुटकी काट जगाती
और मैं
क्षितिज को ताकता रहा
कल रात
बहुत देर तक जागता रहा
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