Tuesday, April 09, 2013

कल रात बहुत देर तक जागता रहा


कल रात 
बहुत देर तक जागता रहा 
नींद के झोंकों से भागता रहा 
तुझे आँखों में बसाये 
तेरी यादों को सीने से लगाये 
वक्त की धूल फाँकता रहा 
कल रात 
बहुत देर तक जागता रहा 

कभी उँगलियों से हथेली पर लिखता तेरा नाम 
कभी विरह के सिक्कों का गिनता दाम 
सोचता रहा 
जाने बीतेंगे ऐसे कितने और सुबहो- शाम 
तेरे ना होने के एहसास को 
दर्द से नापता रहा 
कल रात 
बहुत देर तक जागता रहा 

रात बहुत लम्बी थी 
- बैरन 
कैसे करवट करवट कट जाती 
जो आँख लगे तो यादें तेरी 
चुटकी काट जगाती  
और मैं
क्षितिज को ताकता रहा 
कल रात 
बहुत देर तक जागता रहा 

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