हर रात गुजारी है
मैंने
सलीब पर
हर दिन चला हूँ
मैं
तपती रेत पर नंगे पैर
ना दर्द उभरा सवाल बनकर
ना तपिश ठहरी जवाब बनकर
ना कदम रुक
ना सर झुक
सांसें सुलगती रहीं
आँखें चमकती रहीं
है मुझको इल्म नहीं
दीवानगी क्या है
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