Sunday, February 17, 2013

दीवानगी क्या है


हर रात गुजारी है 
मैंने 
सलीब पर 

हर दिन चला हूँ 
मैं 
तपती रेत पर नंगे पैर 

ना दर्द उभरा सवाल बनकर 
ना तपिश ठहरी जवाब बनकर 

ना कदम रुक 
ना सर झुक 

सांसें सुलगती रहीं 
आँखें चमकती रहीं 

है मुझको इल्म नहीं 
दीवानगी क्या है 

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