अब तो
उँगलियाँ भी काटने लगी हैं, मेरी
तेरी यादों से पेच लड़ते - लड़ते
कम्बख़त पतंगसाज ने माँझा बहुत तेज बनाया है
ना जाने
कौन सी वो डोर है
जज्बातों की
जिस पर दर्द का रोगन लपेट कर
उसने टूटे सपनों के टुकड़े चढ़ाये हैं
जो काट न पाई यादें तेरी
पर मेरी उँगलियों में घाव बनायें हैं
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