Tuesday, October 30, 2012

तू


कोशिश बहुत की है
सोचूँ तेरे बारे में
तू क्यूँ नज़र आती है
हर गली - चौबारे में

जो आँखें बंद करता हूँ
तू मुस्कुराती है
जो आँखें खोलता हूँ मैं
तू ही नज़र आतीहै

समझाता हूँ खुदको
तू परछाई है
फिर भी मेरे अन्दर
तू बन के धूप छाई है

तू ही बता, तुझसे
कैसे रिहाई है
सांसें मेरी बनकर
तू मुझ में समायी है

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