न धूप
न लोबान
न इत्र कोई
बस तेरी खुशबू
उतरे मेरी रूह पर
तेरी आँखों से
बन कर दुआ कोई
और महके मेरे रोम -रोम में
बन कर सबा इबादत की
तू मुझ में उतर जाये
बन कर सुबह परश्तिश की
मैं तुझ में सिमट जाऊं
शिद्दतों से पेश्तर
और विसाल हो ऐसा
कुछ भी रहे न बाँकी
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