मैं जानता हूँ
तुम
कुछ ना कहोगे
तब चुप रहे थे
और
अब चुप रहोगे
वैसे
कहना भी क्या है
बांकी क्या रह गया
चुप रह कर
तुमने
सब कुछ तो है कह दिया
ये ख़ामोशी
जितनी गहरी है
उतनी ही
धार पर ठहरी है
लफ्ज़ फिसल जो जायेंगे
कई तूफ़ान आएंगे
कुछ तेरे भ्रम भी टूटेंगे
कुछ मेरे सपने बह जायेंगे
वक्त भी कितन शातिर है
जो तेरे दर पर ले आया
तुझ से छीना तेरा सूरज
मुझ से छीनी मेरी छाया
हालातों ने, जज्बातों ने
कुछ ऐसा वहम जगाया
जितनी कोशिश की बह जाऊँ
उतना ही तुझ से उलझाया
अब ऐसा हूँ कुछ मिल गया
लगता हूँ तुझ से सिल गया
अब तू थामे
या बहने दे
या मुझको बीच में रहने दे
अब कुछ भी हो चाहे
है
मुझको मंज़ूर
शायद तेरी परश्तिश का
ये ही है दस्तूर
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