कभी ऐसी सुबह आये
कि मेरे सामने तू हो
मैं जी भर तुझे देखूं
और वक्त थम जाये
तेरे नूर हो रहबर
मुझ से जिल्द सा लिपटा
नुमाया इल्म का आलम
जहालत निगल जाये
इबादत की मौजों में
कुछ तो डूब जाऊं मैं
खुद को खो कर भी
फिर तुझको पाऊँ मैं
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