Wednesday, August 01, 2012

एक रात ख्वाब की


तू मुझे नवाज दे 
एक रात ख्वाब की 
जो तुझको लपेट कर 
आँखों में कट जाये 

बहती रगों में है 
कशिश जो 
तिश्नगी बन कर 
तेरे लम्स से तकमील हो 
और छट जाया 

बनकर रवानी 
तू मेरी 
रूह में उतरे 
और पुश्ते - फ़िराक
इखलास की 
शिद्दत से कट जाएँ 

है मरासिम जो तू 
है मौत भी मंजूर 
फिर मेरा चाहे 
ये सर भी कट जाये

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