Tuesday, August 28, 2012

इस रिश्ते को उम्मीद कहता हूँ


मैं 
ये जानता हूँ 
कि 
मेरा होना 
तुम्हारे लिए 
महज एक इत्तेफाक है 
उस चूने की तरह 
जो दीवार से सटते सटते 
तुम्हारे कोट की आस्तीन पर लग गया था 
जिसे तुमने 
अपनी नाजुक अंगुलिओं से 
झड़ने की कोशिश बहुत की 
मगर 
वो नामुराद 
हवा में उड़ कर 
तुम्हारी साँसों में घुल गया 

इस रिश्ते का कोई नाम नहीं 
तुम इसे दर्द कहती हो 
शायद 
जब भी मैं तुम्हारी जख्मी अंगुलियाँ देखता हूँ 
तब मैं भी यही सोचता हूँ 
मगर 
ये यकीन है मेरा 
की ये घाव भर जायेंगे 
और तुम 
फिर से 
कोट की आस्तीन पर बचा हुआ चूना भी झडोगी
और अगर 
तब हवाएँ साथ दें 
तो तुम्हारी साँसें ही मेरा वजूद बन जाएँगी 
मैं 
इस रिश्ते को उम्मीद कहता हूँ

1 comment:

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