मैं
तुम से
न कोई गिला करूँगा
न शिकवा
न शिकायत कोई
मैं
तुम को
न कोई नसीहत दूंगा
न हिदयात
न सलाह कोई
तुम ...तुम हो
और
मैं ...मैं हूँ
शायद
यही फर्क है
और फासला भी
न
ये फासला कम होगा
न फर्क
तुम
मुझे देख... मुस्कुराना
मैं तुम्हें देख ...मुस्कुराउंगा
कभी बाहें अपनी
कभी गर्दन हिलाऊंगा
दरख्तों की
किस्मत में
हिज्र कहाँ होता है
respecting differneces and yet being one..liked it,skand
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