Thursday, June 07, 2012

जब आँख खुली सुबह तो ये ख्याल आया


जब आँख खुली 
सुबह 
तो ये ख्याल आया
लिपट गया है 
मुझसे 
कितना तेरा साया  
नजरें मिले 
खुद से 
मैं 
फिर से डगमगाया 
लिपट गया है 
मुझसे 
कितना तेरा साया 

ये सोचता रहा 
मैं  
कि कैसे तुझे भुलाऊँ 
जज्बात के भंवर को 
कैसे 
मैं डुबाऊं
कोशिश 
जो भी कि है मैंने 
वही नाकाम होती है 
इस जद्दोजहद में 
यूँ ही 
सुबह- शाम होती है 
कौन सा नुस्खा है वो 
जो 
मैंने नहीं आजमाया 
लिपट गया है 
मुझसे 
कितना तेरा साया 

मुमकिन नहीं है लगता  
तेरे साये से दूर जाना  
आसाँ ही होगा 
शायद 
खुद को भूल जाना 
तू ही बता 
मुझे 
कि 
अब कहाँ मैं जाऊं 
कोशिश करूँ जो चाहे 
फिर लौट के ना आऊं 
जहाँ 
धूप ना निकले 
हो जहाँ ना छाया 
जहाँ 
मैं सिमट जाऊं 
बन के तेरा साया 

जब आँख खुली 
सुबह 
तो ये ख्याल आया

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