इन आँखों में छुपा जो दर्द है उसे जानता हूँ मैं
जो बिन कहे अल्फाज हैं उन्हें पहचानता हूँ मैं
जानता हूँ की यूँही सबकुछ बदल नहीं सकता
मगर बदलेगा तेरा नजरिया ये मानता हूँ मैं
करो ऐतबार खुद पर तुम, तो बीता कल ये सोना है
अगर नहीं यकीं है तो, फिर क्योँ ये माझी ढोना है
फिर क्योँ ये आँखे नम हैं ,फिर किस बात का रोना है
जो कल था वो है बीत गया, अब क्या है जो खोना है
ये दर्द ,ये टीस जो है, बस कुछ देर तक ही सताती है
गाहे बगाहे फिर उसकी यूँही आदत सी पड़ जाती है
जिस अँधेरे ने घेरा है फिर वो ही उजाला बन जाता है
ऑंखें बंद भी कर लो चाहे तुम सब कुछ नज़र आता है
जो मुश्किलों की मौजें हैं वो साहिल बन जाएगी
फिर फरहत के मौसम लेकर तेरे दर पर आएँगी
बस खुद पर थोडा यकीन कर ,और जरा सा इंतज़ार
खड़ा एक नया सूरज है तेरी देहलीज पर मेरे यार
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