बस इतेफ्कान, यूहीं हाल से
या तकदीर की किसी चाल से
ना जाने मैं तुझसे क्योँ जुड़ गया
यूँ तेरी गली में क्यों मुड़ गया
ढूँढ़ते - ढूँढते रोशनी के निशाँ
जो बक्शे तेरी नज़रों ने वहाँ
हर कतरे में तेरा जहाँ नूर था
थामना मुझे भी क्योँ मंज़ूर था
नूर -ऐ - तरब में नहाते हुए
खुद को तसल्ली दिलाते हुए
मजरूह खुद को करम से तेरे
इनायत का रास्ता दिखाते हुए
मैं ऐसा घुला तेरे मखलूक में
तुझमें जर्रा - जर्रा मेरा सन गया
लिपट कर मैं तेरी रानाई से
गर्द से,खाख से,आफताब बन गया
तू ही बता अब कहाँ जाऊं मैं
तेरी रौशनी को जहाँ पाऊँ में
तेरे दर छोड़ने से है बेहतर
परिस्तिश में तेरी ही मर जाऊं मैं
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