Tuesday, January 24, 2012

मुझे एक जगह तो ऐसी बता दे


तुम, सच ही तो कहती हो
शायदकि तुम पर 
परछाई भी मेरी भारी है
इस नकद - नारायण दुनियाँ में 
ये बेकार उधारी है 
तुम जैसी होजी सकते हो 
इन हालातों के जाल में 
है जरूरत मेरी तुमको 
नहीं किसी भी हाल में 
तुम ने शायद ठीक कहा 
मैं साथ तुम्हारा छोड़ दूँ
अपनी इन राहों को मैं
कहीं अलहदा मोड़ दूँ 
तुम रहो जहाँ भी जैसी हो 
जब तक हो , जिस हाल में 
अब भी क्या कुछ रखा है 
इस रिश्तों के कंकाल में 

एक बात बताओ तुम मुझको 
मुझको जाना किस ओर है 
जहाँ ढलती बिन तेरे है रात 
जहाँ होती बिन तेरे भोर है
जहाँ तू ना है, ख़ामोशी है 
ना ही यादों का शोर है 
होते ख़त्म जहाँ हैं, रिश्ते सारे 
ना कोई बंधन है , ना डोर  है 
जहां मेरे उलझे ज़ज्बातों का 
ना ओर है , छोर है 
मुझे एक जगह तो ऐसी बता दे 
जहाँ तुझको ढूंढ पाऊँ मैं 
एक जगह कोई ऐसे हो 
जहाँ खुद को ही मिल जाऊं मैं 
एक जगह ऐसे कोई भी 
जहाँ तू ,तू नहीं कोई और है 
जहाँ मैं ,बस, मैं ही हूँ 
जहाँ शीशे में नहीं कोई और है 

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