Sunday, January 29, 2012

लौट कर अपने घर आओ


चलो बंद करो अपनी ऑंखें 
और अपनी बाहें फैलाओ 
सुन माँ तुमको बुला रही है 
लौट कर अपने घर आओ 
घर जहाँ पर 
माँ अब भी लोरी सुनती है 
जिसकी गोदी में सर रखकर 
नीद सभी को आती है 
बूढी ईजा वहां आज भी 
राख - बभूत लगाती है 
मानों सच , या ना मनो तुम 
डर वो दूर भागती है 
वहां चंदा अब भी मामा है 
जो रोज रात को आता है 
तारों की सगौतों से वो  
अम्बर को भर जाता है 
वहां खिले बुरांश है पेड़ों पर 
और वसंत की हरियाली है 
और तितली चूमे फूलों को 
बन मदमस्त सवाली है 
वहां नर्म घास पर ओस सजी है 
जो पैरों को सहलाती है 
कोशिश कर लो जितनी चाहे तुम
मुस्कान लौट ही आती है 
चलो बंद करो अपनी ऑंखें 
और अपनी बाहें फैलाओ 
सुन माँ तुमको बुला रही है 
लौट कर अपने घर आओ 

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