चलो बंद करो अपनी ऑंखें
और अपनी बाहें फैलाओ
सुन माँ तुमको बुला रही है
लौट कर अपने घर आओ
घर जहाँ पर
माँ अब भी लोरी सुनती है
जिसकी गोदी में सर रखकर
नीद सभी को आती है
बूढी ईजा वहां आज भी
राख - बभूत लगाती है
मानों सच , या ना मनो तुम
डर वो दूर भागती है
वहां चंदा अब भी मामा है
जो रोज रात को आता है
तारों की सगौतों से वो
अम्बर को भर जाता है
वहां खिले बुरांश है पेड़ों पर
और वसंत की हरियाली है
और तितली चूमे फूलों को
बन मदमस्त सवाली है
वहां नर्म घास पर ओस सजी है
जो पैरों को सहलाती है
कोशिश कर लो जितनी चाहे तुम
मुस्कान लौट ही आती है
चलो बंद करो अपनी ऑंखें
और अपनी बाहें फैलाओ
सुन माँ तुमको बुला रही है
लौट कर अपने घर आओ
BEAUTIFUL... DEEP EMOTIONS..
ReplyDeleteWell said buddy
ReplyDeletebahut khoobsurat.....Skand.poetry chases you...:)))
ReplyDeletebahut hridaysparshi kavita
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