तुम ,कल भी तुम थी
तुम,तुम ही आज हो
कुछ भी तो नहीं बदला
वही दर है
वही दीवारें
वही बंजारे बादल
वही आजाद फुहारे
सपने भी वही हैं आँखों में
दिल में चुभती है टीस वही
हैं शब्द वही जो तुमने कहे
हैं अर्थ वही जो कहे नहीं
फिर भी तुम कहते हो
की सब कुछ बदल गया
वक्त का कतरा कोई
आघे निकल गया है
पर सूरज -चंदा अब भी
खेलतें हैं छुप्पन छुपाई
दिन निकला तो रात गयी
रात ढली तो सुबह आई
कुछ भी तो नहीं है बदला
संगी, रिश्ते, नाते
अब जिन्दा हैं यहीं - कहीं
वो तेरे- मेरी बातें
फिर क्योँ मैं अंजन हूँ तुझसे
क्योँ मायने बदल गए
बदला है बस तेरा नजरिया
और कसमे वादे पिघल गए
No comments:
Post a Comment