Sunday, January 29, 2012

.....तू


तू मुझ में हैं शामिल
कुछ इस तरह
की जहाँ देखूं
तू ही नजर आता है
नम आखों से जो कभी देखूं आईना में
तू खड़ा मुस्काता है
हर चोट पर मेरी तू
मरहम बन जाता है
मायूसी की अंधी गलियों में
तू नयी रोशनी लता है
तेरा करम है जो
मेरा वजूद महकता है
बन के नूर तू मेरी
रूह को सजाता है
तू मुझ में है , मैं हूँ तुझ में
तुझ में सब कुछ मिल जाता है
"
खुद" के अन्दर है तू शामिल
और "खुदा" कहलाता है

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