पिघला जो अँधेरा छाया है
एक नया सवेरा आया है
चल उठ, अब देख जरा
वो नयी रोशनी लाया है
रंगोली से उमीदों की
आंगन तेरा सजाया है
फूलों खिले हैं आशा के
चमन तेरा महकाया है
चल , बहार निकल
और देख जरा तू
धूप सुनहरी छाई है
हरी दूब तेरे आंगन में
अब फिर से लहराई है
तुझ से मिलने देख, यहाँ
तितली कितनी आयी हैं
रंगों की सौगातें वो
अपने पंखों में लायी हैं
सुन क्या चिड़ियाँ गाती है
क्या गीत कोई सुनती हैं
जाहिर है, तुझ से मिलने ही
वो तेरे घर पर आती हैं
भवरों की गुनगुन सुन
ये जीवन की है धुन
छोड़ उलझा ताना बना
एक नयी सी रेशम बून
चल, नर्म दूब पर
साथ चलें हम नगें पैर
खिली सुनहरी धूप में हम
चल साथ करें कुछ सैर
साझी चुप्पी कुछ साथ करें
कुछ तो हम बात करें
छोड़ दे अंधेरों को अब
एक नयी शुरुवात करें
No comments:
Post a Comment