Thursday, January 26, 2012

सफ़र


मुश्किल सफ़र है
मैं जानता हूँ 
तुम जीत लोगे खुदको 
मैं ये मानता हूँ 
बड़ी मुश्किल डगर है 
और दूर सहर है 
अँधेरा है , 
जो कम नहीं होता 
मगर 
रात के पहलू में
ज्यादा दम नहीं होता 
देखो 
शितिज़ पर रोशनी के कतरे 
मुस्कुरा रहे हैं 
तुझको गले लगाने को 
नजदीक  रहे हैं 
मानता हूँ 
पैर घायल है 
और रूह भी बोझिल 
उम्मीद कब के बुझ गयी 
तम्मना राख़ हो गयी
और रोशनी की चाहत भी 
खाख़ हो गयी 
फिर भी
यकीं कर खुद पर 
खुदा पर 
जो तेरा रूप है 
दर्द के दरया के पार
फरहत की धूप है 
बस 
चार कदम और चल 
अँधेरा दूर होगा 
तेरी रूह में शामिल 
नूर होगा 
फिर 
ना दर्द रहेगा 
ना तड़प कोई 
ना माझी कोई सताएगा 
घुल जायेंगे सभी ओज में 
बस तू ही तू रह जायेगा 

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