कभी कभी
खामोशियाँ पढ़ते हुए
ये महसूस किया है मैंने
कि वो अक्स था तेरा
जो अब तक मेरे हमसाया था
बड़ी शिद्दत से जिनसे
मेरा साथ निभाया था
इसरार कि हर रात जो
जागा था मेरे साथ, और
एक पल को भी न सोया था
लिबास बन लिपट कर मुझसे
जो मेरे साथ में रोया था
उन गर्दिशों के दौर में
जो मेरा आफताब था
रफू उम्मीद से किया, जिसने
मेरा हर ख्वाब था
गर्दिशों के दौर में
जो पुरजोश था हबीब
अब वो भी मुझसे
दामन चुरा रहा है
और साया भी तेरा मुझसे
अब दूर जा रहा है
शायद कहीं पर कोई
सूरज मुस्कुरा रहा है
या उफक पर अँधेरा
अब गहरा रहा है
कभी कभी
खामोशियाँ पढ़ते हुए
ये महसूस किया है मैंने
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