क्या हवा तुम्हारी है ?
क्या पानी तुम्हारा है,
क्या मिटटी तुम्हारी है ?
न आकाश तुम्हारा है, न धरती तुम्हारी है
न दिन तुम्हारा है , न रात तुम्हारी है
न सूरज , न चंदा , न तारे
हैं कुछ भी नहीं तुम्हारे
फिर भी
रातों को तारे गिनते हो
सुबह धूप में बैठ कर जिंदगी बुनते हो
सांस लेते हो , आस होती है
मिटटी हर वख्त तुम्हारे पास होती है
फिर
प्यार को क्योँ बंधते हो ?
Poignant and meaningful !!
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