Friday, January 06, 2012

स्वामित्व


क्या हवा तुम्हारी है ?
क्या पानी तुम्हारा है, 
क्या मिटटी तुम्हारी है ?

न आकाश तुम्हारा है, न धरती तुम्हारी है 
न दिन तुम्हारा है , न रात तुम्हारी है 
न सूरज , न चंदा , न तारे 
हैं कुछ भी नहीं तुम्हारे 

फिर भी 
रातों को तारे गिनते हो 
सुबह धूप में बैठ कर जिंदगी बुनते हो
सांस लेते हो , आस होती है 
मिटटी हर वख्त तुम्हारे पास होती है 

फिर
प्यार को क्योँ बंधते हो ?  

1 comment: