Wednesday, December 07, 2011

भोर

तू गर सुन सके ख़ामोशी का शोर

है जो गूंजता तेरे चारों ओर


कोशिश तो कर तू पुरजोर


और खिंच ले अंधेरों का छोर


न कोई धागा, न कोई डोर


छिपी हुई है कहीं इक भोर


जो दौड़ी चली आयेगी तेरी ओर

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