मैंने शाम के रंग देखें हैं झील पर तैरते
लहरों में लिखी आयातों की तरह
जो घुल जाते हैं अंधेरों के वजूद में
जब स्याह रात के आगोश में सो जाता है दिन
रात चाहे मायूसी से भी गहरी उतर जाये
और इंतज़ार की आस्तीन छोटी पड़ जाये
सुबह होती है ,नया दिन निकलता है
सूरज कभी झील में नहीं डूबता
लहरों में लिखी आयातों की तरह
जो घुल जाते हैं अंधेरों के वजूद में
जब स्याह रात के आगोश में सो जाता है दिन
रात चाहे मायूसी से भी गहरी उतर जाये
और इंतज़ार की आस्तीन छोटी पड़ जाये
सुबह होती है ,नया दिन निकलता है
सूरज कभी झील में नहीं डूबता
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