उम्मीद अभी भी बैठी है देहलीज पर
की कोई लौट आयेगा
पहले होगी क़दमों की आहट
फिर दरवाजा खट- खटायेगा
कैसे उसे ये कोई अब समझाएगा जो बीत गया है वो
लौट के अब न आयेगा
उम्मीद कई दलीलें देगी ,
जिरह करेगी जज्बातों से
अब उस से भला कोई
कैसे जीत पायेगा
क्या उसको बतलायेगा
कैसे उसको समझाएगा
न क़दमों की आहट होगी
न ही कोई आएगा
कतरा कतरा रिस रहा है
उम्मीद का गहरी रातों में
कमली सी वो हो गयी है
उलझी उलझी जज्बातों में
कहती है
जब टूटेंगी सांसें
और
अर्थी कोई उठाएगा
तब तो
क़दमों की आहट होगी
तब तो कोई आएगा
की कोई लौट आयेगा
पहले होगी क़दमों की आहट
फिर दरवाजा खट- खटायेगा
कैसे उसे ये कोई अब समझाएगा जो बीत गया है वो
लौट के अब न आयेगा
उम्मीद कई दलीलें देगी ,
जिरह करेगी जज्बातों से
अब उस से भला कोई
कैसे जीत पायेगा
क्या उसको बतलायेगा
कैसे उसको समझाएगा
न क़दमों की आहट होगी
न ही कोई आएगा
कतरा कतरा रिस रहा है
उम्मीद का गहरी रातों में
कमली सी वो हो गयी है
उलझी उलझी जज्बातों में
कहती है
जब टूटेंगी सांसें
और
अर्थी कोई उठाएगा
तब तो
क़दमों की आहट होगी
तब तो कोई आएगा
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