Monday, November 21, 2011

उम्मीद


उम्मीद अभी भी बैठी है देहलीज पर
की कोई लौट आयेगा
पहले होगी क़दमों की आहट
फिर दरवाजा खट- खटायेगा
कैसे उसे ये कोई अब समझाएगा 
जो बीत गया है वो
लौट के अब न आयेगा

उम्मीद कई दलीलें देगी ,
जिरह करेगी जज्बातों से
अब उस से भला कोई
कैसे जीत पायेगा
क्या उसको बतलायेगा
कैसे उसको समझाएगा
न क़दमों की आहट होगी
न ही कोई आएगा

कतरा कतरा रिस रहा है
उम्मीद का गहरी रातों में
कमली सी वो हो गयी है
उलझी उलझी जज्बातों में
कहती है
जब टूटेंगी सांसें
और
अर्थी कोई उठाएगा
तब तो
क़दमों की आहट होगी
तब तो कोई आएगा

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