गांठें उलझनों की उँगलियों से नहीं खुलती
इन्हें वक्त ही सुलझाएग
अब देखना है तेरे हिस्से
कितना है , कितना आयेगा
अगर इन्तेजार करोगे की अँधेरा करवट बदले उजाला यूँ ही सताएगा
न दरवाजे पर दस्तक देगा
न गली में तेरी आएगा
और अगर तुम ठान लो
अँधेरे को साथी मान लो
यही अँधेरे तेरे अंचल में नया सवेरा लायेगा
जिसमें सूरज तेरा होगा
जो प्रकाश फैलाएगा
तेरे रोशन होने से ही
तुम मनो ना मनो ये
सब कुछ बदल पायेगा
इन्हें वक्त ही सुलझाएग
अब देखना है तेरे हिस्से
कितना है , कितना आयेगा
अगर इन्तेजार करोगे की अँधेरा करवट बदले उजाला यूँ ही सताएगा
न दरवाजे पर दस्तक देगा
न गली में तेरी आएगा
और अगर तुम ठान लो
अँधेरे को साथी मान लो
यही अँधेरे तेरे अंचल में नया सवेरा लायेगा
जिसमें सूरज तेरा होगा
जो प्रकाश फैलाएगा
तेरे रोशन होने से ही
तुम मनो ना मनो ये
सब कुछ बदल पायेगा
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