Wednesday, November 23, 2011

तुम ... खूबसूरत हो


मैं मानता हूँ कि
तुम ताबज्जू नहीं देती इस जरुरत को
कि जाहिर करो कि तुम कितनी खूबसूरत हो
जाहिर सी बात है , जो तुम जताती नहीं
पर सच्चाई खुद को छिपाती नहीं
गहरी घटाएँ है घिर-घिर के आती
हैं जुल्फें हवाओं में जब लहराती
है आँखों में कोई जादू है गहरा
जिन पर घनी पलकों का पहरा
गलों पर सुबह का रंग मिला है
होंठों पर गुल सा तबस्सुम खिला है
तुम वसंत का एहसास हो
तुम रोशनी का आभास हो
तुम जीवन की तरंग हो
उल्लास हो तुम, उमंग हो
तुम इन्द्रधनुष के रंग हो
बादल हो तुम, पतंग हो
तुम फ़रहात का जहान हो
आकाश हो तुम ,उड़न हो
तुम में है कशीष जो गुम्म कर दे
फिर भी तुम पहचान हो
जाहिर सी बात है , जो तुम जताती नहीं
पर सच्चाई खुद को छिपाती नहीं

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