Saturday, November 26, 2011

नया सवेरा

क्यूँ है ढूंढता, तू सुकून ,
किसी दरवेश की बात में
क्या मिलेगा तुझे,
किसी फकीर के साथ में
इन मंदिर , मस्जिद , गिरजे में 
क्या तुझे मिल पायेगा
झूट सच का लेखा जोखा
कहाँ तू ले जायेगा
धर्म के ठेकेदार ,
ये क्या तुझको समझाएंगे
खुद बे इल्म है ,ये नूर से
तुझको क्या दिखलायेंगे
इतना भी न समझा तू
की उसका नूर सवेरा है
जिसके हर कतरे से रौशन
वजूद ये तेरा मेरा है
अपने अन्दर झाँक
अँधियारा मिट जायेगा
रौशन होना उसके नूर से
नया सवेरा पायेगा

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