Thursday, November 17, 2011

उम्मीद पर ही दुनिया चलती है

अब मैं नहीं पूछुंगा तुमसे
कि तुम कैसे हो
शायद ये बड़ा बेहूदा सवाल है
क्योंकि जब तक तुम खुद बदलना नहीं चाहोगे
मौसम बदलेगा नहीं 
मानता हूँ मैं की ये आसान नहीं
दर्द गहरा उतर गया है सलीब बन कर
मगर इतना मुश्किल भी तो नहीं
तुम कोशिश तो करो
देखो जब तक तुम पौंध नहीं लगाओगे 
मेरे पानी देने से कुछ नहीं बढ़ने वाला
तुमको शुबा है कि फिर से फसल काँटों की ही होगी
मगर ये जरुरी तो नहीं
हो सकता है इस बार महकते केसर खिल जाएँ
मुन्जमिंद जमीन पर
और उनका रंग जिंदगी की रंगत बदल दे
शायद
उम्मीद पर ही दुनिया चलती है
वरना किसने कल देखा है

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