शायद अब मैं यहाँ नहीं आऊंगा
थोड़ी मुश्किल तो होगी मगर
कुछ दिनों तक तो सही वादा ये निभाऊंगा
मुझे महसूस होता है कि मैं खिड़की पर खड़ा हूँ
जहाँ से मैं तुझको देख सकूं
जब तुम पर्दा हटती हो तो धुप निकल जाती है
फिर गिरती हो पर्दा तो रोशनी पिघल जाती है
जब साये गहरातें तो सोचता हूँ अक्सर
कि जब तुम को मेरी दरकार नहीं तो
फिर यहाँ मैं क्योँ खड़ा हूँ
लौटने कि कोशिश बहुत की है
फिर भी न जाने क्यों जड़ा हूँ
कभी कभी लगता है बस की अब और नहीं
पर उम्मीद कि भी कोई ठौर नहीं
लगता है कि फिर से तू पर्दा हटाएगी
और रोशनी मुझको निगल जाएगी
थोड़ी मुश्किल तो होगी मगर
कुछ दिनों तक तो सही वादा ये निभाऊंगा
मुझे महसूस होता है कि मैं खिड़की पर खड़ा हूँ
जहाँ से मैं तुझको देख सकूं
जब तुम पर्दा हटती हो तो धुप निकल जाती है
फिर गिरती हो पर्दा तो रोशनी पिघल जाती है
जब साये गहरातें तो सोचता हूँ अक्सर
कि जब तुम को मेरी दरकार नहीं तो
फिर यहाँ मैं क्योँ खड़ा हूँ
लौटने कि कोशिश बहुत की है
फिर भी न जाने क्यों जड़ा हूँ
कभी कभी लगता है बस की अब और नहीं
पर उम्मीद कि भी कोई ठौर नहीं
लगता है कि फिर से तू पर्दा हटाएगी
और रोशनी मुझको निगल जाएगी
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