Thursday, November 17, 2011

ख़ामोशी

ख़ामोशी
का रंग कुछ भी हो सकता है
कभी गुस्सा 
कभी प्यार 
कभी उदासीनता 
कभी दुत्कार 

मगर 
इस कोरे आभास में 
मैं कोई रंग क्योँ भरूं
कभी तो कुछ कहोगे 
चलो इंतज़ार करूं

ये जरूरी नहीं कि
मैं जो कहूं तुमको सच्चा लगेगा 
अगर तुम जाहिर करोगे तो अच्छा लगेगा
कभी मुख्तलिफ होना भी जरुरी है 
चुप रहना भी क्या कोई मजबूरी है

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