ख़ामोशी
का रंग कुछ भी हो सकता है
कभी गुस्सा
कभी प्यार
कभी उदासीनता
कभी दुत्कार
का रंग कुछ भी हो सकता है
कभी गुस्सा
कभी प्यार
कभी उदासीनता
कभी दुत्कार
मगर
इस कोरे आभास में
मैं कोई रंग क्योँ भरूं
कभी तो कुछ कहोगे
चलो इंतज़ार करूं
ये जरूरी नहीं कि
मैं जो कहूं तुमको सच्चा लगेगा
अगर तुम जाहिर करोगे तो अच्छा लगेगा
कभी मुख्तलिफ होना भी जरुरी है
कभी मुख्तलिफ होना भी जरुरी है
चुप रहना भी क्या कोई मजबूरी है
No comments:
Post a Comment