जब सुबह का सूरज मेरे घर में झांकता हैं
उम्मीद के कितने कतरे कोनों में टंगता हैं
माध्यम से तपिश से जब नीद पिघलती हैं
फिर नए होंसलों की एक नदी में ढलती हैं
सूखे पत्ते वो कल के फिर से हरे हो जाते हैं
ठंडी हवा के झोंकों में वो आशा सहलाते हैं
नया दिन और नयी बात,कोशिस जगती है
सूरज की थापों पर फिर जिंदगी भागती है
उम्मीद के कितने कतरे कोनों में टंगता हैं
माध्यम से तपिश से जब नीद पिघलती हैं
फिर नए होंसलों की एक नदी में ढलती हैं
सूखे पत्ते वो कल के फिर से हरे हो जाते हैं
ठंडी हवा के झोंकों में वो आशा सहलाते हैं
नया दिन और नयी बात,कोशिस जगती है
सूरज की थापों पर फिर जिंदगी भागती है
No comments:
Post a Comment