Thursday, November 10, 2011

नया दिन

जब सुबह का सूरज मेरे घर में झांकता हैं


उम्मीद के कितने कतरे कोनों में टंगता हैं 


माध्यम से तपिश से जब नीद पिघलती हैं 


फिर नए होंसलों की एक नदी में ढलती हैं


सूखे पत्ते वो कल के फिर से हरे हो जाते हैं


ठंडी हवा के झोंकों में वो आशा सहलाते हैं 


नया दिन और नयी बात,कोशिस जगती है 


सूरज की थापों पर फिर जिंदगी भागती है

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