जो बाँट के हमें गए फिरंग सितमगर
लपटों में आज भी है तेरा मेरा ये घर
मेरे घर की आंच से तपता हे तेरा तन
तेरे दर्द से भाई दुखता है मेरा मन
सियासत की झूठी गोलियां क्योँ खाएं
क्योँ नहीं हम अपने जज़्बात अब जताएं
मिल कर बने हम दरया नफरतें बहायें
बदल बने , बारिश बाहें , आग ये बुझायें
इस ईद हम मिलें गले और पीठ थपथपाएं
लपटों में आज भी है तेरा मेरा ये घर
मेरे घर की आंच से तपता हे तेरा तन
तेरे दर्द से भाई दुखता है मेरा मन
सियासत की झूठी गोलियां क्योँ खाएं
क्योँ नहीं हम अपने जज़्बात अब जताएं
मिल कर बने हम दरया नफरतें बहायें
बदल बने , बारिश बाहें , आग ये बुझायें
इस ईद हम मिलें गले और पीठ थपथपाएं
No comments:
Post a Comment