पर ...
वो सपनो के गुच्छे सारे पलकों में अटक गए
वो खयालों के जलजले लफ़्ज़ों में भटक गए
उमीदों से भरे मर्तबान कड़ी धूप में चटक गए
कोशिश में भी थी शायद गहरी कशिश कोई
की साहिल तो मिल हमें पर तैरते ही रह गए
फासला अल्फाज़ का था मंजिल के दरमियाँ
पर सीधे से बोल दो हम टटोलते ही रह गए
एक पल की बात थी और खुदाई बदल जाती
कयामत का वो लम्हा बस खोजते ही रह गए
पर...वक्त कहाँ दायरों में कैद होता है ?
वो सपनो के गुच्छे सारे पलकों में अटक गए
वो खयालों के जलजले लफ़्ज़ों में भटक गए
उमीदों से भरे मर्तबान कड़ी धूप में चटक गए
कोशिश में भी थी शायद गहरी कशिश कोई
की साहिल तो मिल हमें पर तैरते ही रह गए
फासला अल्फाज़ का था मंजिल के दरमियाँ
पर सीधे से बोल दो हम टटोलते ही रह गए
एक पल की बात थी और खुदाई बदल जाती
कयामत का वो लम्हा बस खोजते ही रह गए
पर...वक्त कहाँ दायरों में कैद होता है ?
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